निजी वाहनों को सब्सिडी योजना में शामिल नहीं किया जाएगा

मुंबई, केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदी पर सब्सिडी देने की योजना भी बनाई थी। लेकिन अब सरकार ग्रीन एनर्जी का गला यह निर्णय लेकर घोट रही है कि वह केवल कमर्शियल वाहनों को ही सब्सिडी देने में अब समर्थ है। केंद्र सरकार का कहना है कि निजी उपयोग के वाहनों को सब्सिडी योजना में शामिल नहीं किया जाएगा।
बता दें कि इलेक्ट्रिक बसों की मांग तेजी से बढ़ रही है। केंद्र सरकार ने हाल ही में निजी इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी देने से साफ इनकार कर दिया है। सरकार ने यह साफ कर दिया है कि ई-बस की कंपनियों को ई-बसों के निर्माण पर सब्सिडी नहीं दी जाएगी, वहीं सरकार ने सफाई देते हुए कहा है कि नई ई-बस की कीमतें, भारी सब्सिडी के बिना भी, डीजल और सीएनजी की परिचालन लागत से कम है। इसी के तहत केंद्र ने इलेक्ट्रिक बस बनानेवालों को बिना सब्सिडी के कारोबार के लिए तैयारी करने के लिए फीलर्स भेजे हैं। सरकार द्वारा नियंत्रित कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज (सीईएसएल) द्वारा आयोजित ५,४५० बसों के लिए २०२२ की शुरुआत में जारी केवल पहली निविदा में केंद्र द्वारा प्रदान की जानेवाली सब्सिडी थी।
अल्ट्राटेक ग्रीनटेक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक केवी प्रदीप ने कहा, ‘जहां तक ​​सब्सिडी का सवाल है, अब तक विभिन्न ९ परियोजनाओं के लिए दी जानेवाली फेम सब्सिडी चालू है। लेकिन भविष्य की परियोजनाओं के लिए, सरकार बिना सब्सिडी के निविदा सी में ड भागीदारी को प्रोत्साहित कर रही है इसलिए सब्सिडी तत्व अब व्यवसाय में शामिल नहीं है और भविष्य में यह समान नहीं होगा।’ कुछ महीने पहले जारी हुई ६,४६५ इलेक्ट्रिक बसों के लिए दूसरे टेंडर में सब्सिडी की पेशकश नहीं है। १२-मीटर बस के लिए बिना किसी सब्सिडी के ई-बस के संचालन की लागत लगभग ५४.३ रु. प्रति किमी (इंट्रा-सिटी) और ३९.८ रु. प्रति किमी (इंटरसिटी) थी। ९ मीटर की बस के लिए यह ५४.४६ रु. प्रति किमी और ७ मीटर की बस के लिए ६१.९२ रु. प्रति किमी थी। सीईएसएल के एमडी और सीईओ विशाल कपूर ने कहा, ‘जहां तक ​​नेशनल इलेक्ट्रिक बस प्रोग्राम (एनईबीपी) के तहत ई-बस टेंडरों का संबंध है, वे सब्सिडी के बिना हैं। यहां तक ​​कि हम आगे बढ़ते हैं, एनईबीपी-२, जो अभी लाइव है, बिना सब्सिडी के है।’
ई-बस खंड, जिसे राज्य सरकारों और उनके परिवहन उपक्रमों (एसटीयूपी) से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, उन्हें अब सब्सिडी सहायता की आवश्यकता नहीं है। मॉडल के तहत, निविदाओं में अनुबंधों के लिए बोली लगानेवाली कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि वे या तो अपनी स्वयं की बैलेंस शीट के तहत या एक वित्त भागीदार के साथ टाई-अप के माध्यम से बस संपत्ति का प्रबंधन करें।

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