युवा कर्मचारियों में अपनी नौकरी को लेकर असुरक्षा

मुंबई, मौजूदा डिजिटल युग में जेनरेशन जेड यानी १८ साल से लेकर २४ साल तक उम्र वाले लोग, जिन्हें जूमर्स भी कहा जाता है, अपनी नौकरी को लेकर भयंकर हताशा के दौर से गुजर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर कामकाजी लोगों का निरंतर अध्ययन करनेवाली संस्था ऑल्वेज डिजाइनिंग फॉर पीपल (एडीपी) ने हाल ही में दुनिया के १७ देशों के ३२ हजार से अधिक कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारत के ४७ प्रतिशत नौकरीपेशा लोग अपनी नौकरी को लेकर दुविधा में जी रहे हैं। भारत में जेनरेशन जेड के लगभग ५० प्रतिशत कर्मचारियों में अपनी नौकरी को लेकर भयंकर असुरक्षा व्याप्त है। इस सर्वेक्षण में केवल ३८ प्रतिशत नौकरीपेशा लोगों ने कुछ हद तक अपनी नौकरी को सुरक्षित माना है।
एडीपी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसी ७ जुलाई को ‘पीपुल एट वर्क २०२३: ए ग्लोबल वर्कफोर्स व्यू’ नामक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में अपनी नौकरी को लेकर अनिश्चितता से जूझ रहे जेनरेशन जेड के भारतीय कर्मचारियों के आंकड़ों ने भारत के सभी सरकारी दावों की पोल खोल दी है। ध्यान देनेवाली बात है कि जेनरेशन जेड समूह के कर्मचारियों के सामने सारा जीवन पड़ा है। उन्हें लंबे समय तक टिकाऊ नौकरी की जरूरत होती है ताकि वे अपना घर-संसार बसा सकें। लेकिन आलम यह है कि उनके सामने ‘आगे क्या होगा रामा रेऽऽऽ’ की स्थिति पैदा हो गई है।
इस सर्वेक्षण में जेनरेशन जेड के ५० प्रतिशत कर्मचारियों ने माना कि वे अपनी नौकरी को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यही सवाल जब ५५ साल से अधिक उम्रवाले भारतीय कर्मचारियों से किया गया तो २४ प्रतिशत कर्मचारियों ने माना कि उनकी नौकरी की कोई गारंटी नहीं है। इसका मतलब है कि अधेड़ कर्मचारियों की तुलना में युवा कर्मचारियों में नौकरी की असुरक्षा की भावना दोगुनी है। ()