लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार खत्म

सोलापुर: 2014 और 2019 में मोदी लहर में बीजेपी ने सोलापुर सीट यहां के कद्दावर नेता सुशील कुमार शिंदे को हरा कर जीती थी। सोलापुर में शिंदे के वर्चस्व को खतरे में डाल दिया था। अब बीजेपी ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक के लिए पिछले दो चुनाव की तरह प्रत्याशी बदल दिया है। बीजेपी ने विधायक राम सातपुते के सहारे यहां हैट्रिक का तानाबाना बुना है। वहीं, कांग्रेस ने वापसी की उम्मीद में शिंदे की जगह उनकी विधायक बेटी प्रणिती शिंदे को मैदान में उतारा है। यूं तो इस सीट से 21 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला सातपुते बनाम प्रणिती के बीच है। एमआईएम ने इस सीट से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है, तो वहीं प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी ने निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दिया है। इससे कांग्रेस उम्मीदवार प्रणिती को फायदा मिलने की उम्मीद है। वहीं, बीजेपी विरोधी मत एक होने से उसके उम्मीदवार की राह मुश्किल हो गई है।
कर्नाटक और तेलंगाना बॉर्डर से सटी इस लोकसभा सीट पर मराठी, मुस्लिम, दलित और तेलंगाना से वर्षों पहले आकर बसे पद्मशाली समाज चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है। वंचित एवं एमआईएम का उम्मीदवार न होने से वोटों का ध्रुवीकरण होने की बात कही जा रही है।
एकनाथ शिंदे की जिद से ठाणे सीट पर BJP नाराज तो महाराष्ट्र सीएम ने खुद संभाला मोर्चा, की 6 घंटे मैराथन बैठक
2019 के उलट राजनीतिक समीकरण
2019 में सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ बीजेपी ने वीर शैव लिंगायत समाज के गौडगांव मठ के जय सिद्धेश्वर शिवाचार्य महास्वामी को उम्मीदवार बनाया था। वहीं, वंचित के आंबेडकर खुद एमआईएम के साथ गठबंधन कर इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे। 2019 के चुनाव में आंबेडकर को 1.70 लाख वोट मिले थे। शिंदे बीजेपी उम्मीदवार से 1.58 लाख वोटों से हार गए थे यानी शिंदे की हार के पीछे एमआईएम और वंचित का गठजोड़ था। वहीं, बीजेपी के वोट एकमुश्त जय सिद्धेश्वर को मिले, जिससे वह बड़ी जीत दर्ज कर सके। 2024 में स्थिति पूरी तरह से पलट गई है। वंचित के उम्मीदवार राहुल गायकवाड ने आखिरी समय में नामांकन वापस ले लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। वहीं, एमआईएम ने अपना उम्मीदवार ही इस सीट पर नहीं उतारा है। इससे बीजेपी विरोधी वोट का बंटवारा इस बार के चुनाव में होने की उम्मीद कम है।
वंचित और एमआईएम के दलित और मुस्लिम वोटर्स के बीजेपी के खिलाफ जाने का अनुमान है, इसका लाभ प्रणिती को मिलने की उम्मीद है। स्थानीय लोगों का भी मानना है कि इस बार सोलापुर में 2014 और 2019 की तरह लहर बीजेपी के पक्ष में दिखाई नहीं दे रही है। इससे बीजेपी की इस सीट से जीत की हैट्रिक लगाने की राह काफी मुश्किल दिखाई दे रही है। वहीं, बीजेपी नेता विजय सिंह मोहिते पाटील के बीजेपी छोड़कर शरद पवार के साथ जाने से भी स्थिति काफी बदल गई है।
पश्चिम महाराष्ट्र का मैनचेस्टर कहा जाने वाला सोलापुर आज भी कई सुविधाओं से वंचित है, जबकि यहां से सुशील राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और केंद्र में यूपीए सरकार के दौरान कई महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं। इस सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा में से 4 सीट पर बीजेपी के विधायक हैं, एक पर एनसीपी और प्रणिती सोलापुर सिटी सेंट्रल से इकलौती कांग्रेस विधायक हैं। खास बात यह है कि सातपुते बगल की माढा लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले मालाशिरास विधानसभा सीट से विधायक हैं। सोलापुर में पानी की समस्या, एयरपोर्ट का रुका काम, एयरपोर्ट के नाम पर सिद्धेश्वर सहकारी चीनी मिल की चिमनी गिराना, ट्रैफिक जाम से निजात के लिए फ्लाइओवर का निर्माण और स्मार्ट सिटी बनाने का बीजेपी का वादा चुनाव बीजेपी को भारी पड़ सकता है। इसी सीट के अंतर्गत अक्कलकोट और पंढरपुर का हिस्सा आता है, जहां लाखों लोग आते हैं। इन धार्मिक स्थलों को विकसित कर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है, लेकिन अब तक किसी सरकार ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।