सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया
नई दिल्ली, देश में सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों केंद्र व सभी राज्य सरकारों को निर्देशित किया है कि सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजनों को ३० लाख रुपए का मुआवजा देना होगा। न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में २० लाख रुपए का भुगतान किया जाएगा। पीठ ने कहा केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो जाए। इसके अलावा उच्च न्यायालयों को सीवर से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से न रोका जाए। कोर्ट का यह पैâसला एक जनहित याचिका पर आया है।
प्रतिबंध के बावजूद आज भी भारत में गंदी नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई मजदूरों से कराई जाती है। सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में इस तरह की सफाई करने के दौरान ३४७ सफाईकर्मियों की मौत हो चुकी है। लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्रालय से पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने माना है कि भारत में इंसानों से गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों को साफ करवाने की प्रथा अभी भी जारी है और इसमें सैकड़ों लोगों की जान जा रही है। मंत्रालय ने बताया कि इस खतरनाक काम को करने के दौरान २०१७ में ९२, २०१८ में ६७, २०१९ में ११६, २०२० में १९, २०२१ में ३६ और २०२२ में १७ सफाईकर्मियों की जान जा चुकी है।
देश के १८ राज्यों के आंकड़े मंत्रालय के पास हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, इन पांच सालों में इस तरह की सफाई के दौरान सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में ५१ लोग मारे गए। उसके बाद तमिलनाडु में ४८ लोग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में ४४ लोग, हरियाणा में ३८ लोग, महाराष्ट्र में ३४ लोग और गुजरात में २८ लोग मारे गए हैं। लेकिन लोगों का कहना है कि सीवर में मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कई गुना अधिक है। इस प्रथा को बंद करने की मांग करने वाले लोगों का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में आज भी गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई इंसानों से करवाई जाती है। सीवर सफाई के दौरान हादसों में मजदूरों की दर्दनाक मौतों की खबरें आती रहती हैं। अधिकांश जगह आज भी मजदूर सीवर की बिना मास्क, ग्लब्स और सुरक्षा उपकरणों के सफाई करते हैं।