अनाथों को एक प्रतिशत आरक्षण, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कानून का पाठ पढ़ाया

मुंबई, अनाथों को सरकारी नौकरी व शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन में एक प्रतिशत आरक्षण देने की नीति पर मुंबई हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कानून का पाठ पढ़ाया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की नीति लागू करने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में इस नीति पर राज्य सरकार पुनर्विचार करे। दरअसल महाराष्ट्र प्रशासकीय न्यायाधिकरण (मैट) ने २२ जुलाई को अर्जुन टरके नामक युवक के आवेदन पर सुनवाई के बाद उसे अनाथ श्रेणी में क्लर्क कम टाइपिस्ट पद पर आवेदन करने की छूट दी थी। इसके साथ ही महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) को निर्देश दिया था कि वह पद के लिए होनेवाली मेन परीक्षा के लिए टरके का आवेदन स्वीकार करने के लिए ऑनलाइन लिंक खोले। मैट के आदेश के खिलाफ एमपीएससी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने कहा कि एक खास वर्ग को लाभ देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है लेकिन संविधान में अनाथ वर्ग को आरक्षण के विषय में कोई प्रावधान नहीं है इसलिए राज्य सरकार अनाथों के आरक्षण को लेकर बनाई गई नीति पर पुनर्विचार करे अन्यथा यह आरक्षण चुनौती का विषय बन सकता है क्योंकि सरकारी नौकरी में सभी अभ्यर्थी समान व्यवहार चाहते हैं।
एमपीएससी ने साल २०२१ में राज्य सरकार की सी ग्रेड के ९०० पद भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था। इन पदों के लिए आवेदन करनेवाले अभ्यर्थियों को प्रारंभिक और मेन परीक्षा देनी थी। टरके ने प्रारंभिक परीक्षा पास की थी लेकिन उसे टाइपिंग नहीं आती थी जबकि टाइपिंग की योग्यता इस नौकरी के लिए जरूरी थी। लिहाजा टरके ने ७ जुलाई २०२२ के शासनादेश के आधार पर मेन परीक्षा के लिए आवेदन किया। लेकिन एमपीएससी ने टरके के आवेदन को स्वीकार नहीं किया। जिसके बाद टरके ने मैट में आवेदन दायर किया। सुनवाई के बाद मैट ने एमपीएससी को टरके का आवेदन स्वीकार करने का निर्देश दिया था, जिसे एमपीएससी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
२३ अगस्त २०२१ को राज्य के महिला व बाल विकास विभाग ने अनाथों को सरकारी नौकरी व शैक्षणिक संस्थानों में एक प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर शासनादेश जारी किया था क्योंकि अभिभावकों के बिना अनाथ बच्चों को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस बीच सरकार ने ७ जुलाई २०२२ को एक और शासनादेश निकाला, जिसके तहत अनाथ जिस पद के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उसके लिए जरूरी योग्यता हासिल करने के लिए दो साल व दो अवसर प्रदान करने का प्रावधान किया गया था।