जीन थेरेपी से ल्यूकेमिया से पीड़ित मरीजों की जान बचेगी

मुंबई, देश में इजाद हुए जीन थेरेपी से ल्यूकेमिया से पीड़ित मरीजों की जान बचेगी। इस थेरेपी का परीक्षण ल्यूकेमिया से पीड़ित एक ८ वर्षीया बच्ची पर हुआ है। इस परीक्षण में मुंबई के टाटा कैंसर अस्पताल के डॉक्टरों को सफलता मिली है। कैंसर के चिकित्सकों का कहना है कि यह आनेवाले दिनों में यह थेरेपी वरदान साबित होगी।
जानकारी के अनुसार साल २०२० से टाटा अस्पताल में ल्यूकेमिया से पीड़ित ८ साल की बच्ची का इलाज चल रहा था। वह ठीक भी हो गई थी। लेकिन इस बीच तीन महीने पहले इस घातक बीमारी की चपेट में बच्ची फिर से आ गई। डॉक्टरों ने माता-पिता को बताया कि वह और कुछ हफ्तों की मेहमान है।
बच्ची की हालत बहुत खराब थी। ऐसे में डॉक्टरों ने बच्ची के माता-पिता के सामने एक विकल्प रखा। यह विकल्प जीन थेरेपी के घरेलू संस्करण का था। इसका प्रयोग पश्चिम में किया जाता है। इगतपुरी जिले में रहनेवाले ड्राइवर पिता के पास अन्य कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसके लिए पिता राजी हो गया और बच्ची को खारघर के टाटा मेमोरियल सेंटरलेकर पहुंच गया। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनकी बेटी के खून में कोई कैंसर कोशिकाएं नहीं पाई गई हैं। दो साल में पहली बार वह सामान्य दिखी।
सीएआर-टी कोशिकाएं इम्यूनोथेरेपी का एक नया रूप हैं, जो स्वयं कैंसर के उपचार की एक नई शाखा है। इसमें कुछ आनुवंशिक सामग्री के साथ शरीर की ‘टी’ प्रतिरक्षा कोशिकाओं को फिर से इंजीनियरिंग करना शामिल है, ताकि वे खुद कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करके उन्हें मार दें।
८ साल के बच्चे को हिंदुस्थान की पहली स्वदेशी रूप से निर्मित सीएआर-टी कोशिकाओं से सुरक्षित इलाज किया गया। आईआईटी मुंबई और टाटा मेमोरियल सेंटर के बीच यह एक संयुक्त प्रयास था। इस परियोजना को चला रहे आईआईटी मुंबई के वैज्ञानिक डॉ. राहुल पुरवार ने कहा कि इस मेड-इन-इंडिया थेरेपी की कीमत अमेरिका के मुकाबले लागत का १०वां हिस्सा होगी।